गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

“बसंत”कें मोन पारैत !

“बसंत”कें मोन पारैत !


पड़ोरिया चौरमे
लोकक लागल करमान
अहुति, बर्छा ,
बंसी, लाठीक संग
कदोआहा झील ओ
गहींरगर पोखड़िमे
माछ मारबाक
तखन होयत छल
हर्खक अलगे अनूभूति !

भूतही बोन आ
थकिया तरका
भूतहा आमक गाछ्सं
धप धप क’ गिरैत छल
गछपकुआ आम
आ बच्चा सबहक कल्पना
अनायास चूमि लैत छल
हरखक अकाश
बिनु कोनो शारीरिक प्रयासं !

मनकी चौड़ी तs
बूझु, मोनक मनके छल
“चुड़ैल” आ “रकसा”क
प्रेत छाया रहितो
भीमकाय अमलीक गाछ्क
चकमक खटमिठुआ फ़र,
किछु कांच आ
किछु पाकल,
मीठ रहितो कोत क’
दैत रहय मूस बला दांतकें !

नैन्हपनमे सूनल
ओ गमैया श्लोक
मोन पड़ैत अच्छि-
“ थकिया चौर, पड़ोरिया चौर
मनकी चौड़ी नमो नम:” !

खरबन्ना आ
फ़करहन्ना बाधमे
एक बेर भेल रहै
बड्ड लाठी लठौवल
हंसेरी के हंसेरी शस्त्रधारी लोक
करमान लागल दर्शकमे
हमहु रही भयाक्रान्त
जकर अमिट स्मृति
एखनो डरा दइए
गामक मोन पारैत !

मुदा आब….
ओ ग्राम्य-स्मृति सेहो
झकरि रहल अछि
चौक तर पूरना पाकड़ि जकं
अतीतक नीक-अधलाह स्मृति
विस्मृतिक कोनिया-कोलकी
चौर-चांचर-बोन-बाध आदिमे
ओधबाध भ’ गेल अछि,
जखन मोन पाड़ैत हम
बौयाय- औनाय लागैत छी
कियेक त’ -
सुझाइ नहि दैत अछि
ओ बाल-बसंतक बीतलाहा सुखद क्षण
तप्पत जीनगीक धीपल-चौबटिया पर !

लेखक :- भास्कर झा

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